ऋतुमती हुईं लूएं
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संवादरत हैं संगीत
रगों में
संगीतमय़ी हो गयी है देह
देह -चित्त से शून्य हुआ
चेतना के रथ -
सवार
मन- सितार
बज रहा है
हजारों - हज़ार मीलों दूर.!
ऋतुमती हुईं अशांत लूएं
मेह बरसने के बाद
तृप्त है धरती
मगन है आकाश
अपने ही अनहद नाद !
झुलस रहे धोरों से
निकली पगडंडियों पर
शोध रहा हूं शताब्दियों से
जीवन - संगीत
पर
अफसोस कि
सन्नाटा ही बुनता रहा
जीवन पर्यन्त !!
ऋतुमती हुईं अशांत लूएं
ReplyDeleteमेह बरसने के बाद
तृप्त है धरती.....सुंदर ,..
झुलस रहे धोरों से
निकली पगडंडियों पर
शोध रहा हूं शताब्दियों से
जीवन - संगीत
पर
अफसोस कि
सन्नाटा ही बुनता रहा
जीवन पर्यन्त !!....यह शोध कभी पूरा नहीं होता ,वाकई बहुत सुंदर भाव और शब्द रचित रचना है यह ...शुभकामनाये