Sunday 1 April 2012

प्रभाती गाये जा रही  है माँ


आलस मरोड़
उठ खड़े है धोरे रेत के


मुस्करा रहे है
खेजड़ी और बबूल


चिहुँक उठे है घोंसले
तौल रहे है पंख


छुप गया है
तारा भोर  का


घट्टी संग
प्रभाती गाये जारही है माँ ..!






मीठेश निर्मोही  

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